गरमी मास छल। हाँ, गरमीए छल। ओहि साल बंबई लुधैक केर फड़ल रहए। चूड़ा-दही पर बंबई आम फारा अचारक संग ठूसि केर खेलौं। तेरह टा आम आ तीन फाड़ा खेला केर बाद पेट ढ़कारक द्वारा काहा पठौलक - हे देहधारी! आब मुंह चलौनै बंद कैल जाओ। पेटक आदेश मानैए पड़ै छै, किएक त पेटक बिगड़ने ब्रह्माण्ड आपा से बाहर भ जाए छै। खैर भोजनोपरांत ओसारा पर मोथी पटिया बिछा, रेडियो में लगेलौं- विविध भारती। तकिया पर माथा द किताब उठेलौं- कीचक वध। पोथीक प्रस्तावना आदि त मनोहर छल। मुदा जखैन सर्ग शुरू भेल त बुझना गेल जें एकर रचनाकार मिथिला केर गौरव तंत्रनाथ झा मैथिली शब्दकोश केर टीजर देखा रहल छैथ। दू-तीन पन्ना मोन सं पढ़ला केर बाद सुर्रा सीताराम क केर खतम केलौं। तीन-चारि का दोहा, जे नीक लागल से रैटि लेलौं। किएक त इ दोहा चारि गोटे के बीच में पढ़िके लहरि लूटबा में मोन तिरपित भ जाएत छै। आखिर इ कलिकाल में मोने सब किछ छियै।
पेटमहक चूड़ा फूलनै शुरू भेल। निद्रा देवी के समदिया हाफी बाबू संकेत दिय लगलथि। किताबो केर पद्य सब उपर बाटे जा रहल छले। निद्रा देवी सदिखन एहने ताक में रहै छैथ। ओ नित दिन केर भांति मना केना केर बादो पहुंचलिह आ माथ ठोकिए देलैथ। हम सुतान सुतलौं। गामक जीवन में दुपहरिया नहि सुतलौं त कि सुतलौं। ओना शास्त्र-पुराण दिवाकर के रहथि सुतनाई केर निषेध मानै छैथ। खैर, ओसरा पर बैसि केर पोखरि कते काल लोक निहारत। जलहवा में निद्रा देवी केर चाल द्रुतगामी भ जाइत छान्हि। ओ कलिजुगक अर्जुन थिकाह जे जलहवा केर सामने बिना ताश खेलौन्हे जेठक दुपहरिया जागल काटि लैथि।
कनी काल सुतला केर बाद आंखि खोलैक चेष्टा केलौं त लागल जे पिपनी फेविकोल से चिपैक गेल रहे। मुंह खोलैक चेष्टा केलौं त लागल जेना ठोड़ पर कोई टेप साटि देने रहे। आहिरोबा, आब की करब। मन ओना गेल। हाथ-पैर हिला केर ककरो बजबै केर कोशिश करी त लागल हाथ-पैर संग देबाक अनुबंध तोड़ि लेने रहै। इस त जीबते मृत्युक गति छल। हम जुझैत रहलौं। छटपटैत रहलौं। अंत में धक् से आंखि खुजल त लागल जान बचल। डरा गेलौं। पसीने-पसीना भ गेल रही। सोच्अ लगलौं कि ई की छल। जे छले, भयानक छले।
ताबे देखलौं जे माथा पर उजरा गमछा लेने लूटन बाबा साईकिल से जा रहल छैथ। बाबा कलकत्ता ईनभरसिटी से साइकोलॉजी विषय में जमाना के एम ए पास रहैथि। रिटायर केर बाद गामे रहै छलाह। हाक देलियन- बबा! बबा! गोड़ लगै छी। बबा साईकिल में ब्रेकक उपयोग नहि करैथि। ओ पैर केर जमीन पर टिका दै छलखिन आ साईकिल कतबो बेग में रहे, रूईक जाईत छल। पानक पीक फेकैत बजलाह- जुग जुग जीब! बच्चा! जशस्वी भव! धनमान भव! हम घर से आनि केर बेलक शरबत देलियन। फेर हमर पढ़ाई-लिखाई पर चर्चा भेल। हमरा भकुयैल देखि बजलाह दिन केर कतौ ब्राह्मण सुतै। पढ़ह। आई-कैल विद्ये धन छियैह। श्रम कैल कर। कहबि छै- रटंत विद्या, घसंत जोड़। नहि किछ त थोड़बो थोड़। नीक हेबे करतै। बाबा बैद्यनाथ गाम नहि गेलखिन हें। सर गंगानाथ झा ऐना पढ़ैत छलाह, फलां मिसर एकटंगा द सरस्वती गोहराबैत। सरस्वती बंध्या नहि होईत छथिन्ह। दिन केर नहि सुति। क्षण-क्षण विद्या, कण-कण धन। हम टोकैत कहलियैन बबा हम त पढ़ै ले बैसल रही आकि सुता गेल। ओ आगू किछ कहितैत ताहि से पहिले हम अपन खिस्सा पसारलौंह। कहलियन बाबा आहां बूच्चीबाबू के दौहित्रक रातिम दिनका भोज में स्वप्नशास्त्री फ्रायड के बारे में कहै छलिए। हुं, से कि? बाबा हमरा अखैन स्लीप पैरालासिस के अनुभव भेल। लागल जेना शरीर से आत्मा निकैल गेल रहे। नियर डेथ एक्सपिरियन्स एकरे कहै छै कि। धु... ततेक तों सोचै छ जे। इ सब होने भ्रम छियैह। दिन केर सुतबे किए करब। बबा, हम त पढ़ै ले बैसल रही आ कि सुता गेल।
फ्रायड की कहत, ई सभ त चुटकी केर चीज छियै। से मंत्र फुंकबै जे सब पाड़। अधलाहा बिमारी केर नाम नहि ली। सुतबे करब त गंगाजल छींट केर सुतल कर। फ्रायड की बुझलक, हम जे कहै छिय से करअ। पंचमुखी रुद्राक्ष पहिरने छ ने। से नै त, त्रिपुंड कैल करअ। एकटा पार्थिव शिवलिंग आ शालिग्राम के नित पूजा कैल करअ। नमस्ते रुद्र मन्यव.... से जल ढ़ारल करअ। बबा अपन परमानेंट स्वर पंचम में बाजि रहल छलाह। बबा सबटा करै छी, बड्ड समय लागि जाईए। किछ छोट-छीन रहे, त नियमित भ सकैत अछि - हम कहलियन। पंचम से अवरोह करैत निषाद कोमल में कान लग आबि अपन तकिया कलाम लगवैत कहलैथि- से नै त, चामुंडा केर गोहराब! दुर्गा पोथी लाब। तैहन मंत्र तोड़ा हम बता दै छिअ जे सब बला पड़ा जेतअ। खाली ककरो कहिये नै। बड्ड उग्र मंत्र छै। हम कहलियैन- बबा! हम ए.टी.म केर पिन बता सकै छी किंतु मंत्र नहि बता सकै छी। यैहह... हौ, हमर सभक परंपरा रहि अएलि हें एकरा टूट नहि देबाक छै। हम सब त निबैह देलिय आब तोड़े सभक जिम्मेदारी छौ। परंपरा बड्ड मुश्किल से बचै छै।
हम घर से पोथी अनलौंह बबा उंगरी से बता देलैथ आ कहलथि एगारहो बेर जं क लेब त ई रामबाणक काज करत। पुन: पंचम स्वर में कहलथि आब जाई दे। नेबो केर गाछ देखैत कहलैत बड्ड सुंदर नेबो फड़ल छ, दू टा नेबो लाब। तोहर बाबी के कागजी नेबो बड़ पसीन छैन। हमर फुलबाड़ी के प्रशंसा करैत कहलैत बड़ सुंदर गाछ सब लगेने छै, देख के मन तिरपित भ जाईत अछि। एकरा सब केर भोर-सांझ पैनि देल करअ। बबा कनि काल गप-सब क केर साईकिल उठेलैथ आ गुड़कैबते विदा भेलैत।
तहिया धरि से आइ तक फेर ओ गति नहि भेल। मंत्रक प्रभाव कहिये आ कि समय के फेर। गामक जेठ दुपहरिया केर मौका कमे लगैए। गेबो केलौं त भरि दुपहरिया ट्रेक्टरासुर के आवाज से निद्रा देवी आतंकित रहै छथि। ताहि पर बिजली रानी केर निद्रा देवी से सौतिया डाह। दूनू एक सने दूर्लभ। हिनकर मध्यस्थता करबै बला ईनभरटर मौगियाही लड़ाई में बीच दुपहरिया में अपने शहीद भ जाईए।
:
यैह छल पिहानी। सौ बीमारी केर एक ईलाज होईत
अछि लेकिन मिथिला में एक बीमारी केर सौ ईलाज केल जाईए।
पलटु भाईजी उठै केर चेष्टा करैत बजलाह। टनटनमा पूछिए दैलकैन - भाईजी, एकरा पिहानी कोना कहि देलिए, ई त संस्मरण बुझना गेल। पलटु भाईजी पिनैक गेला। आब आहां बौआ चिरौरी नै करू। छोट छी छोटे जकां रहू। सुनै काल में त भने कान पाथि के सुनलौं।
पलटु भाईजी के शांत कैल गेल। पपीता झक्का बनल। हंसी-खुशी खा केर पलटु भाई बिदा भेला।
क्रमश: निक बुझना गेल त दोसर भाग कनी दिन में परोसब।
©
वाह वाह बडा सुन्दर रचना अइछ
ReplyDelete